क्या निर्वाण के भी प्रकार हैं ?
निर्वाण के तो कोई प्रकार नहीं हैं | जैसे फल जब पक जाता है तो एक क्षण में गिर जाता है, गिरने में कोई प्रकार नहीं है | लेकिन फल के पकने में बहुत सीढियां हैं | अधपका फल है= अभी गिरा नहीं है| कच्चा फल है - अभी गिरना बहुत दूर , गिरने कि यात्रा पर है | गिरेगा तो फल एक क्षण में | पक गया, क्षण भी नहीं लगेगा | फिर गिरने में सीढियां नहीं हैं ; गिर तो एकदम जायेगा | लेकिन गिरने के पहले बहुत सी सीढियां हैं |
कच्चा फल भी वृक्ष से लगा है, अधपका फल भी वृक्ष से लगा है- अगर हम वृक्ष से लगे होने को ध्यान में रखें तो दोनों में कोई फर्क नहीं है | फर्क इतना ही है कि अधपका पहल पकने के करीब आ रहा है, कच्चा फल बहुत दूर है | मगर दोनों वृक्ष से लगे हैं | निर्वाण तो एक ही क्षण में घट जाता है | लेकिन एक व्यक्ति है जिसने कभी धयान नहीं किया, प्रेम नहीं किया- कच्चा फल है | वो भी अभी संसार में है | फिर किसी ने धयान किया, प्रेम किया - वो भी अभी टूट नहीं गया है , अभी वो भी पक कर गिर नहीं गया है, वो भी संसार में है | अगर संसार में ही होने को देखें, तो दोनों संसार में हैं | लेकिन अगर उस भविष्य कि घटना को हम ख्याल में रखें तो एक कुछ कदम आगे बड़ा है गिरने के करीब, और दूसरा अभी बहुत दूर खड़ा है | एक कच्चा फल है, एक अधपका फल है |
बोद्धों के विचार में ध्यान की तीन अवस्थाएं हैं:
झिन्माई: पहली अवस्था में शून्यता उत्पन्न होती है | काम कुछ भी करते रहो, भीतर एक शून्यभाव छाया रहता है | जापान में उसे झिन्माई कहतें है | कभी कभी खुद को भी पता नहीं चलती वो अवस्था; क्योंकि बड़ी महीन और सूक्ष्म है , और अचेतन तल पर होती है | ध्यान करने वाले व्यक्ति को अक्सर हो जाती है झिन्माई | मतलब उसका इतना है कि वैसा व्यक्ति बाहर काम भी करता रहता है, लेकिन बाहर उसका रस नहीं रह जाता | बोलता है, उठता है, बैठता है, दूकान करता है, लेकिन रस उसका बाहर खो गया होता है | बस कर रहा होता है | कर्तव्य निभाता है | सारा रस भीतर चला गया है , और भीतर एक शून्य का अनुभव होने लगा है, जैसे कुछ भी नहीं है ; एक शांति गहन होने लगी है | यह पहली अवस्था है |
सतोरी: दूसरी अवस्था तब आती है जब यह शून्य कभी- कभी इतना प्रगाढ़ हो जाता है कि इस शून्य का बोध होता है , जागरण होता है | अचानक एक क्षण को जैसे बिजली कौंध जाये , ऐसा भीतर शून्य कौंध जाता है |मगर ऐसी कौंध कौंधती है, समाप्त हो जाती है | इस अवस्था को झेन में सतोरी कहतें हैं | सतोरी कई घट सकती हैं |
समाधि : समाधि ऐसी अवस्था है, बिजली जैसी नहीं , सूरज के उगने जैसी | उग गया तो उग गया | फिर ऐसा नहीं कि फिर बुझा | फिर उगा, फिर डूबा - ऐसा नहीं है | उग गया |
समाधि अंतिम अवस्था है | फल पक गया | समाधि उस क्षण का नाम है जो निर्वाण के एक क्षण पहले की है : फल पक गया है, बस अब टूटा, अब टूटा | और तब फल टूट गया | फल का टूट जाना निर्वाण है |
लेकिन इस निर्वाण तक पहुँचने में पहले धयान या प्रेम के माध्यम से एक शून्यता साधी जाएगी ; एक भीतर ठहरना आ जायेगा; बाहर से हटना हो जायेगा ; उर्जा भीतर की तरफ बहने लगेगी; बाहर एक तरह की अनासक्ति छा जाएगी ; करने को सब किया जायेगा लेकिन करने में कोई रस न रह जायेगा ; हो जाये तो ठीक, न हो जाये तो ठीक; सफलता हो कि असफलता, सुख मिले कि दुख- बराबर होगा; व्यक्ति ऐसे जीएगा जैसे नाटक में अभिनेता; अभिनय करेगा बस |
निर्वाण के पहले ये तीन घटनाएं घटती हैं | पहले एक सातत्य बनता है भीतर अचेतन मन में; फिर चेतन में झलकें आनी शुरू होती हैं ; फिर कोई द्वार पर खड़ा होता जाता है; फिर सब खो जाता है | फिर न जानने वाला बचता है न जाना जाने वाला बचता; न ज्ञाता , ने ज्ञेय; न भक्त, न भगवान; फिर वही रह जाता है जो है | कृष्णमूर्ति जिसे कहते हैं that which is | वही रह जाता है| निशब्द ! अनिर्वचनीय ! वही मंजिल है | वही पाना है |
निर्वाण के पहले ये तीन घटनाएं घटती हैं | पहले एक सातत्य बनता है भीतर अचेतन मन में; फिर चेतन में झलकें आनी शुरू होती हैं ; फिर कोई द्वार पर खड़ा होता जाता है; फिर सब खो जाता है | फिर न जानने वाला बचता है न जाना जाने वाला बचता; न ज्ञाता , ने ज्ञेय; न भक्त, न भगवान; फिर वही रह जाता है जो है | कृष्णमूर्ति जिसे कहते हैं that which is | वही रह जाता है| निशब्द ! अनिर्वचनीय ! वही मंजिल है | वही पाना है |
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